सनातन धर्म में अंको का विशेष महत्व माना जाता है। क्योंकि हर अंक से कोई न कोई विशेषता जुड़ी है और धार्मिक शास्त्रों में इन अंको की विशेषता के बारे में बताया गया है। इसी के आधाक पर उस अंक का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर भी देखने को मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में हर अंक का न सिर्फ ज्योतिष बल्कि धार्मिकता के बारे में भी बताया गया है।
जैसे ज्योतिष शास्त्र में अंक 4 को दिव्य माना गया है। वहीं धार्मिक लिहाज से भी इस अंक का गहरा अर्थ बताया गया है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि हिंदू धर्म में 4 नंबर का क्या महत्व है और इसको शुभ क्यों माना जाता है।
क्यों खास है 4 नंबर
धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक 4 युग बताए गए हैं। इन युगों का नाम सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग है। इसके अलावा ब्रह्म देव ने चार ही वेदों की रचना की। यह चार वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद हैं।
शास्त्रों में व्यक्ति के जीवन में हर परिस्थिति से निपटने के लिए चार नीतियों के बारे में बताया गया है। यह चार नीतियां साम, दाम, दंड और भेद हैं।
समय के आकलन के लिए चार प्रहर का वर्णन मिलता है। चार प्रहर में सुबह, दोपहर, शाम और रात है। इसके अलावा शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में चार गुरुओं के बारे में बताया गया है। पहला गुरु पिता, दूसरा गुरु माता, तीसरा गुरु शिक्षक और चौथा गुरु आध्यात्म सिखाने वाला।
हम सभी ने 84 लाख योनियों के बारे में सुना होगा। लेकिन इन 84 लाख योनियों के भी 4 प्रकार हैं। जलचर जो जल में रहे, थलचर जो प्रथ्वी पर रहे, नभचर जो आसमान में रहे और उभयचर जो प्राणी है।
इसके साथ ही शास्त्रों में चार जीव पिंडज, अंडल, स्वेडज और अद्भिज का वर्णन मिलता है। चार भाज्य होते हैं- खाग, नेहा, पेय और चोष्य हैं। वहीं शास्त्रों में चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उल्लेख मिलता है।
व्यक्ति के जीवन में आने वाले पड़ाव भी चार होते हैं। जिनको संस्कृत भाषा में आश्रम कहा गया है। यह चार पड़ाव या आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास है।