हिंदू धर्म में सूर्य को देवता का स्थान प्राप्त है। सूर्य के बिना धरती पर अंधकार छा जाता है। वहीं सूर्यदेव को जल अर्पित करने के अनगिनत फायदे होते हैं। सूर्य को जल अर्पित करने से न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक लाभ प्राप्त होता है और आर्थिक उन्नति मिलती है। सूर्य अच्छी सेहत और जीवन शक्ति का भंडार है। बताया जाता है कि आप सूर्य के प्रभाव में जितना अधिक रहेंगे आप उतना ही अधिक सेहतमंद रहेंगे।
हांलाकि आजकल लोग सूर्य के प्रकाश को रोकने के लिए चारों तरफ से खिड़कियां-दरवाजे बंद रखते हैं। इसी वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी होती है और अन्य कई रोग हमें घेर लेते हैं। सूर्य के प्रकाश का और सूर्य को जल अर्पित करने का अपना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है।
वैज्ञानिक महत्व और लाभ
विज्ञान के मुताबिक सूर्य को जल अर्पित करने के दौरान जब हम पानी की धाराओं में से सूर्य की तरफ देखते हैं। तो उससे निकलने वाली 7 तरह की किरणें हमारी आंखों पर पड़ती हैं। इन किरणों से आंखों को लाभ मिलता है और आंख की रोशनी अच्छी होती है। साथ ही आंखों का रंग भी नेचुरल बना रहता है। बता दें कि जो लोग रोजाना सूर्य को जल चढ़ाते हैं, उनको आंख संबंधी रोग नहीं होते हैं। वहीं सूर्य से विटामिन डी प्राप्त होता है, जो हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है।
धार्मिक महत्त्व और लाभ
अथर्ववेद के एक मंत्र के अनुसार, सूर्य औषधि बनाने में सहायक है। सूर्य विश्व में प्राण स्वरूप विद्यमान है और यह अपनी किरणों से जीवों के स्वास्थ्य को अच्छा रखता है। रविवार का दिन सूर्य को समर्पित होता है और भगवान सूर्य सप्तमी तिथि के देवता है। सूर्य देव को जल अर्पित करते समय 'ऊं घृणि सूर्याय नमः' या 'ऊँ आदित्याय नम:' मंत्र का जाप करना चाहिए। बता दें कि सूर्य को भाग्य का कारक माना जाता है। जिन जातकों की कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर होती है। उनके सरकारी कार्यों में रुकावट आती है औऱ व्यापार नहीं सही चलता है। कार्यस्थल पर हमेशा उच्च पदाधिकारियों से अनबन होती रहती है।
सूर्य को ऐसे करें मजबूत
आपको बता दें कि रोजाना सूर्य को जल अर्पित कर आप कुंडली में सूर्य की स्थिति को मजबूत बना सकते हैं। इससे सूर्य देव प्रसन्न होकर अपने भक्तों के संकटों को हर लेते हैं। साथ ही धन-धान्य, पुत्र, मित्र, आरोग्य, यश, तेज, कांति, विद्या, वैभव और सौभाग्य प्रदान करते हैं। सूर्य देव की विशेष कृपा पाने के लिए रोजाना जल अर्पित करने के साथ ही हर रविवार या फिर किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष के रविवार को नदी या बहते जल में गुड़ और चावल प्रवाहित करने चाहिए।