हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है और यह सोलह संस्कारों में से एक है। सदियों से विवाह संस्कार को पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के साथ किया जाता है। विवाह दो आत्माओं का मिलन है और हर किसी की यह मनोकामना होती है कि उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो। लेकिन कई बार देखने में आता है कि विवाह के बाद कुछ लोगों का पूरा जीवन अनबन, कलह, तनाव और संघर्ष में बीतता है।
ऐसे में दंपति इसका दोष या तो अपने भाग्य या फिर अपने माता-पिता को देते हैं। वहीं दांपत्य जीवन में कलह अधिक बढ़ जाने पर कई बार मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाता है। ऐसे में कई बार वैवाहिक जीवन की कलह हत्या या फिर आत्महत्या में बदल जाता है।
ग्रहों का वैवाहिक जीवन से संबंध
शुक्र ग्रह किसी भी दंपति के वैवाहिक जीवन में सुखों का कारक होता है। लेकिन जब कुंडली में मौजूद शुक्र ग्रह सूर्य को अपनी पावर दे देता है और अस्त हो जाता है। या फिर शुक्र ग्रह कन्या राशि में हो तो दंपति के वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल और कलह मची रहती है।
जब कुंडली के सातवें या बारहवें भाव में राहु ग्रह हो या फिर पांचवे स्थान में चंद्रमा कमजोर होकर बैठा हो। तो वैवाहिक जीवन में कटुता देखने को मिलती है।
कुंडली के सातवें स्थान में राहु और शनि के एक साथ स्थिति होने से और मंगल पर इनकी दृष्टि पड़ने से वैवाहिक जीवन में कड़वाहट भर जाती है।
यदि कन्या की कुंडली में मौजूद मंगल ग्रह की स्थिति बिगड़ जाए, तो वैवाहिक जीवन में अनबन और कलह होने लगती है। दंपति का सुख-चैन समाप्त हो जाता है और पति-पत्नी को एक-दूसरे की बात नहीं भाती है। ऐसी स्थिति में उन बातों पर भी झगड़ा होने लगता है, जो बहुत छोटी होती हैं या फिर कुछ मायने नहीं रखती हैं।
बता दें कि पति-पत्नी के मंगल की पावर लगभग एक जैसी होनी चाहिए। अगर दोनों में से किसी एक का मंगल कमजोर हो जाए, या एक मंगली हो और दूसरा नहीं तो दांपत्य जीवन में कटुता आने लगती है। कम मंगली के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट देखने को मिलती है।