ज्योतिष शास्त्र में गुरु का सम्मान करने पर कुंडली में बैठे गुरु की स्थिति मजबूत होती है और व्यक्ति को इसके शुभ फल मिलते हैं। वहीं किसी से जाने या अंजाने में गुरु का अपमान होता है, तो गुरु कमजोर होता है और कुंडली में बैठे सबल ग्रह भी अच्छे परिणाम नहीं दे पाते हैं। बता दें कि नवग्रह में हर ग्रह किसी न किसी मानवीय रिश्ते या पद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष में बृहस्पति गृह को देवताओं का गुरु माना जाता है। वहीं बृहस्पति को गुरु ग्रह भी कहा जाता है। गुरु ग्रह धरती पर सभी गुरुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
गुरु का सम्मान करने पर गुरु ग्रह जातक के ज्ञान में वृद्धि करते हैं और शिक्षा आदि के क्षेत्र में सफलता मिलती है। ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति यानी की गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक कहकर परिभाषित किया गया है। गुरु ग्रह को सबसे ज्यादा शुभ ग्रह माना जाता है और इसकी दृष्टि कल्याणकारी होती है। कुंडली में गुरु ग्रह जिस स्थान को देखता है, उस स्थान के शुभ प्रभावों में वृद्धि करता है।
यदि किसी जातक की कुंडली में गुरु ग्रह उच्च यानी की बलवान होता है, तो ऐसा व्यक्ति ज्ञानवान और सद्गुण संपन्न होता है। क्योंकि बृहस्पति नवग्रह से सबसे ज्यादा शुभ ग्रह है। यह ग्रह विवाह और संतान का भी कारक है। अगर किसी जातक की शादी में देरी हो रही है, तो उसको गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु मंत्र प्राप्त करके गुरु पूजन करना चाहिए औऱ गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। इससे विवाह में होने वाली देरी खत्म हो जाती है।
जिन जातकों की कुंडली में गुरु ग्रह कारक अवस्था में होता है, उनको गुरु पूर्णिमा के दिन दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में पुखराज या उपरत्न सुनहला धारण करना चाहिए। क्योंकि गुरु ग्रह के अशुभ होने पर जातक की शिक्षा में अवरोध आने लगता है। कन्या की कुंडली में गुरु ग्रह से उसके पति का विचार किया जाता है। जिस कन्या की कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ यानी नीच के होते हैं, उसके विवाह में बाधा या रुकावट उत्पन्न होने लगती है। ऐसे में गुरु ग्रह के शुभ फल पाने के लिए जातक को गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए। जिससे कि कुंडली में बैठा गुरु आपको शुभ फल दे सके।